
1964 की ‘गीत गाया पत्थरों ने’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय क्लासिक सिनेमा का वो माइलस्टोन है जिसमें पत्थरों में छिपे प्रेम, कला और संघर्ष को एक प्रेम कहानी के ज़रिए जिया गया। वी. शांताराम की कलात्मक दृष्टि और रामलाल के मधुर संगीत ने इस फिल्म को “डायनामाइट विथ लवली रिदम” बना दिया।
कहानी: मूर्तिकार बना प्रेमी, प्रेमिका बनी प्रेरणा
विजय (जीतेन्द्र) एक युवा टूर गाइड और मूर्तिकार है जिसे विद्या (राजश्री) नाम की एक शास्त्रीय नृत्यांगना से प्यार हो जाता है। लेकिन कहानी में मोड़ तब आता है जब विद्या की मां उसे अमीर आदमी को बेचने की साजिश करती है। विद्या भागकर विजय के पास आती है और दोनों शादी कर लेते हैं — लेकिन क्लासिक ड्रामा यहीं से शुरू होता है!
“क्लास डिवाइड, मिसअंडरस्टैंडिंग, सीक्रेट आइडेंटिटी – एक दमदार बॉलीवुड तड़का!”
क्लासिक तिकड़ी: वी. शांताराम, जीतेंद्र और राजश्री की पहली उड़ान
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यह जीतेन्द्र और राजश्री की डेब्यू फिल्म थी।
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वी. शांताराम ने निर्देशन, लेखन, संपादन और निर्माण सब खुद किया — मतलब एक आदमी का फुल स्टूडियो!
संगीत: रामलाल ने दिल को छूने वाले रागों से भरे पत्थर
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“सांसों के तार पर, गीत गाया पत्थरों ने” को किशोरी अमोनकर और आशा भोंसले ने स्वर्गीय अंदाज़ में गाया।
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हसरत जयपुरी और विश्वामित्र आदिल के लिखे गीतों में प्रेम और पीड़ा दोनों झलकती है।
अगर ये प्लेलिस्ट में नहीं है, तो आपकी रेट्रो लिस्ट अधूरी है!
पुरस्कार और पहचान
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फिल्मफेयर बेस्ट सिनेमैटोग्राफर अवॉर्ड – कृष्णराव वाशिरदा के लिए
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हर शॉट जैसे मंदिर की मूरत – कैमरा वर्क ने स्क्रीन पर संजीवनी डाली।
कलाकारों का अभिनय: कच्चा मगर असरदार
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जीतेन्द्र भले ही नए थे, लेकिन उनके चेहरे की मासूमियत ने विजय को एक जीवंत किरदार बना दिया।
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राजश्री ने विद्या के दर्द और गरिमा को बखूबी पर्दे पर उतारा।
पत्थर तो बोल पड़े, सेंसर बोर्ड कब बोलेगा?
1964 में यह फिल्म रिलीज़ हुई और तब भी लोगों ने सिनेमा से social commentary की उम्मीद की। फिल्म में एक वेश्या को पवित्र बताया गया, तो कुछ तबकों के गाल सूज गए, लेकिन वही सीन आज भी “progressive storytelling” का उदाहरण है।
“और अंत में… जब पिता निकले गलत, मां बनी विलेन और नायिका ही थी असली राजकुमारी!”
फिल्म के क्लाइमेक्स में संयोग, भावनात्मक टकराव और परिवार पुनर्मिलन का ऐसा मेल है, जो पुराने समय की हर बॉलीवुड फिल्म का ट्रेडमार्क रहा है।
लेकिन यह फिल्म उसे भी एक संवेदनशील और कलात्मक टच देती है।
क्लासिक लव स्टोरी जो समय से आगे थी
‘गीत गाया पत्थरों ने’ न केवल पहली फिल्म थी दो उभरते सितारों की, बल्कि यह फिल्म भी थी — जिसने ये दिखाया कि कला, प्रेम और नारी गरिमा किसी भी दौर में प्रासंगिक हैं।
“ये फिल्म नहीं, मूर्तियों की भाषा में लिखी एक प्रेमकथा है।”
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